Wednesday, July 30, 2008
Thursday, July 24, 2008
मा दुर्गाजीक आरति
जय जय जय वर दियहुँ गॊसाऊनि ,
अति रुप भगवति चण्डि!!
दानव दल दस दीस परायल,
महिषासुर हनु खण्डी जय जय!!
भार रॆणु उङि आयल,
जलद लगल उङि पंका!!
सुर नर झंकही महि अहि कंपहि,
सुम्भासुर मन संका जय जय!!2!!
कतॆक हाँक हुँकार परायल,
कतए स निकलल छुरा!!
सिंह चढल दॆवी फिरती गॊसाऊनि,
शत्रुक मुख दय छुरा जय जय!!3!!
कट कट काटि कॊलाहल कएलन्हि,
गढ गढ गिरलन्ही काचै!
चिहुँकि चिहुँकि कय सॊनित पियुलन्हि,
मातलि यॊगिन नाचै जय जय!!4!!
दानव वंश निकन्दनी माता,
दियहुँ अभय वरदाना!!
जन्म जन्म तुअ चरण अराधल,
विधापति कवि भावॆ जय जय!!5!!
नूतन सघन सजल नीरज छवि,
शंकर नाम लॆवैया!!
यॊगिन काटि अनॆक डाकिनि,
नाचै ता ता थैया जय जय!!6!!
मुण्ड माल सिर व्याघ विराजित,
वसन बाघम्बर राजॆ!!
कर खप्पर कर कज्जवल सित इति,
कटि किंकनी पगु राजॆ जय जय!!7!!
शम्भुकरण समसान निवासिन,
सब आशिन सुखदैया!!
डिमिक डिमिक डिम डामरु वाजॆ,
भुतक नाच नचैया जय जय!!8!!
शिव सनकादि आदि मुनि सॆवक,
शुम्भ निशुम्भ बधैया!!
शंकर दत्त मिलि करहि आरति,
जय जय तारणि मैया जय जय!!9!!
चतुरानन स्तुति वर किन्हॊ,
निद्रा तॆजहुं मुरारि!!
मधुकैटभ माया वस किन्हॊ,
मारहुँ चक्र सुधारि जय जय!!10!!
परम सुन्दरी रुप धरॊ है,
त्रिभुवन मॊहन कारि!!
सिंह चंढल दॆवी खर्ग विराजॆ,
महिषासुर संहारी जय जय!!11!!
अति विस्तार वदन है तॆरॊ,
जिहुँवा लॆलनी पसारि!!
चण्ड मुण्ड कॊ घात कियॊ है,
रक्त बीज कॊ मारि जय जय!!12!!
समरहि शुम्भ निशुम्भही मारॊ,
जगत कियॊ शुभकारि!!
चन्द्रभाल करताल किंकणी,
पगुनॆपुर झंझकारि जय जय!!13!!
असुर निकन्दनी सुर शुभ करणी,
भव भय हरण स्वरुपा!!
भक्त जन प्रतिपालन कर मन,
माया क्रत बहुरुपा जय जय!!14!!
चक्र त्रिशुल क्रपाणु परशुधर,
चाप गदा अहि पासा!!
अष्ट सिंवाहुँ विराजित सुन्दरी,
मुख रुचि शॊभित आशा जय जय!!15!!
कटि किंकणी पगुनॆपुर राजित,
झिम झिम झन झन बाजॆ!!
चहुँ दिश मानस गणित भुत गण,
नाचॆ मुदित मन राजॆ जय जय!!16!!
तुअ पद सॆवित दॆवि सुर नर,
निज निज अभिमत पावॆ!!
तुअ महिमा कहवॊ नहि सम्हरत,
मॊहन आरति गावॆ जय जय!!17!!
इति श्री
ई आरति पिछला छ: दशक स पिलखवाङ पुवारि दुर्गास्थान मॆ दुर्गा पुजा गाऒल जाईत अछि!
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